Monday, 21 August 2017

नालंदा👉कविताओं में उकेरा ग्राम्य संस्कृति व जीवन में उभर रही विसंगति को।

नालंदा से एके सविता की रिपोर्ट।
(Sub-Editor Prince Dilkhush)


बिहारसरीफ।रहुई प्रखंड के अकबालगंज ग्राम के जननायक कर्पूरी ठाकुर सभागार में रविवार को कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से श्रोताओं का भरपूर आनंद और मनोरंजन किया। कवियों ने अपने हास्य-व्यंग्य से दर्शको को ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया।  मगही कवि उमेश प्रसाद उमेश ने सरस्वती वंदना से कवि सम्मेलन का आगाज़ किया। कवि महेंद्र कुमार विकल ने अपनी हास्य कविता सुनाकर खूब वाहवाही लूटी।
बिहार के मशहूर गजलकार, गीतकार हरिशचन्द्र प्रियदर्शी ने अपनी गजल "चांद तुम्हारी कसम काश तुम बन जाती ध्रुवतारा"
"सहरा में था लंगूर जो इंसान हुआ था,
शहरों में है इंसान जो लंगूर हुआ है।
तुम जनिवे मंजिल युहीं चलते रहो लोगों,
मंजिल से तो मंजिल का पता दूर हुआ है।" लोगों के सामने प्रस्तुत की।
डी पी आर ओ लालबाबू सिंह ने बदल रहे सामाजिक जीवन की विसंगतियों को व्यंग्य तथा हास्य के माध्यम से  प्रस्तुत कर दर्शकों को मन्त्र मुग्ध कर दिया।
कवि राकेश बिहारी शर्मा  बाल मजदूर की दुर्दशा को कविता "पढ़ने की जब उम्र थी तो, बाल श्रमिक हो गए।" के माध्यम रखा।
कवि दीपक कुमार ने सद्भावना कविता व एक गजल पेश किया।
इस अवसर पर जिला जनसम्पर्क पदाधिकारी लालबाबू सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा की हिंदी कविता और उर्दू शायरी इस देश की दो आंखें हैं। हिंदी और उर्दू में कोई टकराव नही। हिंदी बायें से चलती है और उर्दू दायें से। इस तरह के मुशायरा एवं कवि सम्मेलन के आयोजन से आपसी सौहार्द बढ़ता है तथा भाषा को भी बढ़ावा मिलता है। संचालन मगही कवि उमेश प्रसाद उमेश ने किया। अध्यक्षता साहित्यकार कवि डॉक्टर दयानन्द प्रसाद ने की। सम्मेलन के संयोजक कवि राजेश ठाकुर ने आगंतुकों के प्रति आभार प्रकट किया।
इस दौरान राकेश बिहारी शर्मा, बाल कवि नीलकमल, कवि महेंद्र कुमार विकल, फिल्मकार एसके अमृत, अर्जुन प्रसाद बादल, लोक कवि कैलाश महतो, अजीत कुमार, बलराम दास, सुबोध कुमार सिन्हा, कवि भारत मानस, अरविंद प्रसाद आदि ने भी कविताओं के माध्यम से अपने भाव रखे।

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